मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें हम सभी महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और आध्यात्मिक गुरु थे। वे 1869 में पोरबंदर, गुजरात में जन्मे थे। गांधी ने विवेकानंद के शिक्षा को अपनाया था जिसने उन्हें धर्म और नैतिकता की महत्ता समझाई थी। उन्होंने अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, स्वदेशी और स्वराज के मूल्यों को अपनाया और इन मूल्यों को अपने देश की आजादी के लिए अपनाया।
गांधी की पहली शिक्षा पोरबंदर में हुई थी, जहां उन्हें वेद, संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान सिखाया गया था। बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए बॉम्बे में जाना शुरू किया जहां उन्हें विज्ञान, धर्म और नैतिकता की शिक्षा मिली। उन्होंने वहां से अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं में अधिक ज्ञान प्राप्त किया।
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डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) Jivan Parichay 1893 में, गांधी दक्षिण अफ्रीका में जाकर वहां के इंग्लिश और इंडियन कम्युनिटी के लोगों के लिए न्याय के लिए लड़ने का फैसला किया। वहां उन्होंने रहते हुए उन्हें इंग्लिश समुदाय की अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें सत्याग्रह और अहिंसा की ताकत से परिचित करवाया। उन्होंने अफ्रीकन सत्याग्रह के दौरान अपने नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बचाया और अपने संघटनात्मक कार्यक्रम में इन मूल्यों का प्रयोग किया।
1915 में वापस भारत लौटने के बाद, गांधी ने राजनीतिक जीवन में भी अपने नैतिक मूल्यों को अपनाया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की जो ब्रिटिश शासन के विरोध में था। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता के लिए सत्याग्रह, अहिंसा और सभ्यता का प्रयोग किया।
1919 में, जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरोध में बहुत अधिक सत्याग्रह किया जिससे उन्होंने अपने संघटनात्मक कार्यक्रम में भारत के स्वाधीनता के लिए नए मार्ग खोजना शुरू किया।
उन्होंने भारतीय समाज में एक नए स्वाधीनता आंदोलन का आविष्कार किया, जिसमें सभ्य तरीके से सत्याग्रह और अहिंसा के जरिए ब्रिटिश शासन के विरोध में लड़ाई लड़ी जाती थी।
गांधी ने इस सत्याग्रह आंदोलन के लिए विभिन्न अभ्यास किए, जिनमें अहिंसा, तपस्या, त्याग और संस्कृति का समावेश था। उन्होंने लोगों को उनके अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया और भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धन के संरक्षण के लिए लड़ाई लड़ने का प्रेरणा दिया। अंग्रेजी शासन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने भारत के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए बढ़िया तरीके खोजे जैसे कि अखंड भारत अभियान, खादी आंदोलन, हार्टाल आदि।
उन्होंने भारतीयों को
उन्होंने भारतीयों को स्वावलंबी बनाने के लिए कई अन्य कार्यक्रम भी शुरू किए। उन्होंने तांत्रिक और शिक्षा क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल की जो उनके समय में बहुत महत्वपूर्ण थीं।
गांधी ने भारतीय स्त्रियों को सशक्त करने के लिए भी कार्य किया। उन्होंने इनके लिए अपने खादी आंदोलन की शुरुआत की, जिससे स्त्रियों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने का अवसर मिला। उन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए भी काफी महत्वपूर्ण कदम उठाए।
गांधी ने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ते हुए अनेक बार जेल जाने का सामना किया। उन्होंने अपने सत्याग्रह आंदोलन के जरिए ब्रिटिश सरकार को अपने अन्यायी शासन के लिए जिम्मेदार ठहराया।
भारत की आजादी के बाद गांधी ने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनमें आपातकाल के विरोध में लड़ाई, विविध धर्मों के बीच सद्भावना के लिए कार्य करना, भारत-पाकिस्तान विवाद के समय, गांधी ने दोनों देशों के लोगों को शांति के मार्ग पर लाने के लिए कार्य किया। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सद्भावना बढ़ाने के लिए कई उपाय अपनाए।
गांधी ने भारत की आजादी के बाद धार्मिक तानाशाही के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। उन्होंने धर्म-निरपेक्षता के प्रति अपना विश्वास प्रकट किया और सभी धर्मों के लोगों को एक साथ ले कर चलने की अपील की।
गांधी ने अपने जीवन के दौरान अनेक उपवास भी किए, जिनमें उन्होंने धर्म-निरपेक्षता, सद्भावना और शांति के लिए प्रयास किए। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक शांति और एकांत का अनुभव किया।
महात्मा गांधी की मृत्यु
महात्मा गांधी की मृत्यु 30 जनवरी, 1948 को हुई। उनकी मृत्यु की जगह ब्रह्मवार्ता के दक्षिणी तटों पर स्थित राज घाट के पास थी।
उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी नेता नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर मार डाला था। नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या के लिए अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा को जिम्मेदार ठहराया था। गांधी उन्हें कांग्रेस से निकालने का फैसला कर चुके थे और यह उनके विचारों से असहमत होने के कारण हुआ था।
गांधी की मृत्यु ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को गहरी आंच से झकझोर दिया था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके संघर्ष और विचारों को अगली पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में याद रखा जाता है। उनकी मृत्यु के बाद उन्हें देश के एक महापुरुष के रूप में सम्मानित किया जाता है, जिसने भारत के स्वतंत्रता के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था।